मेरौ छोटो सो लड्डू गोपाल ...
कौन है सुन्दर चौहद भुवन, या पे शिव भोला भी निहाल है
प्रीत लड़ावै बृज की गोपियाँ, सखी नन्द यशोदा को लाल है ।
माखन लौना हाथ लियो है, झांकी अजब कमाल है
अब कैसेट कहूँ सखी नज़र न लग जाये, दासी के लड्डू गोपाल हैं ।।
मेरौ छोटो सो लड्डू गोपाल, सखी री बड़ो प्यारो है ।
प्यारो है सखी प्यारो है, प्यारो है मतवारो है ।।
दीदा मटकाये जब सुबह को जागे,
जब मैं नहलाऊँ मेरे हाथों से भागे,
बड़ी मुश्किल से करूँ मैं संभाल ।।1।। सखी री बड़ो ...
भोग मैं लगाऊँ मोकूँ टुकुर टुकुर देखे,
फल जो चढ़ाऊँ वा कूँ मो पै ही फेंके,
या के मोटे मोटे फूल जाएं गाल ।।2।। सखी री बड़ो ...
सारा दिन चुपके चुपके मस्ती मनावे,
शाम जो ढले मो कूँ मुरली सुनावे,
वा की मुरली पै जाऊँ बलिहार ।।3।। सखी री बड़ो ...
नित्य नई लीला करे रहता ये मौन है,
श्रीहरिदासी का इसके सिवा कौन है,
हुई वाकी मैं छोड़ जग जाल ।।4।। सखी री बड़ो ...
प्रबल प्रेम के पाले पड़कर ...
प्रबल प्रेम के पाले पड़कर, प्रभु को नियम बदलते देखा ।
उनकी शान टले टल जाये, जन का मान न टलते देखा ।।
जिनकी केवल कृपा दृष्टि से, सकल विश्व को पलते देखा
उनको गोकुल में गौरस पर, सौ-सौ बार मचलते देखा ।।
जिनका ध्यान विरंची शंभु, सनकादिक न सम्हलते देखा
उनको ग्वाल सखा मण्डल में, लेकर गेंद उछलते देखा ।।
जिनकी वक्र भृकुटि के भय से, सागर सप्त उबलते देखा
उनको मात यशोदा के भय से, अश्रु 'बिन्दु' दृग ढलते देखा ।।
कन्हैया को इक रोज रोकर पुकारा ...
कन्हैया को इक रोज रोकर पुकारा ।
कहा उनसे जैसा हूँ अब हूँ तुम्हारा ।।
वो बोले कि साधन किया तुमने क्या-क्या ।
मैं बोला किसे तुमने साधन से तारा ।।1।।
वो बोले न दुनिया में आकर किया कुछ ।
मैं बोला कि अब भेजना मत दुबारा ।।2।।
वो बोले परेशां हूँ तेरी बहस से ।
मैं बोला ये कह दो तू जीता मैं हारा ।।3।।
वो बोले कि जरिया तेरा क्या है मुझ तक ।
मैं बोला कि दृग 'बिन्दु' का है सहारा ।।4।।
जो निज कर्म से होते तरने के काबिल ।
तो फिर ढूँढते क्यों सहारा तुम्हारा ।।
यदि नाथ का नाम दयानिधि है ...
यदि नाथ का नाम दयानिधि है, तो कृपा भी करेंगे कभी ना कभी ।
दुखहारी हरी दुखिया जन के, दुख क्लेश हरेंगे कभी ना कभी ।।
जिस अंग की शोभा सुहावनी है, जिस श्यामल रंग में मोहिनी है ।
उस रूप सुधारस से स्नेहियों के, दृग प्याले भरेंगे कभी ना कभी ।।1।।
जहॉं गीध निषाद का आदर है, जहॉं ब्याध अजामिल का घर है ।
वही वेष बनाके उसी घर में, हम जा ठहरेंगे कभी ना कभी ।।2।।
करूणानिधि नाम सुना था जिन्हें, चरणामृत पान कराया जिन्हें ।
सरकार अदालत में ये गवाह, सभी गुजरेंगे कभी ना कभी ।।3।।
हम द्वारे पे आपके आन पड़े, मुद्दत से इसी जिद पर हैं अड़े ।
जग सिन्धु तरे जो बड़े से बड़े, जो 'बिन्दु' तरेंगे कभी ना कभी ।।4।।
सीताराम सीताराम सीताराम सीताराम ... (मनोज तिवाड़ी)
सीताराम सीताराम, सीताराम सीताराम ।
भज मन राम राधेश्याम, सीताराम जै जै राम ।।
यह नाम बनाया प्रथम पुज्य गणपतिजी को पल में ।
यह गया यही अवलम्ब नाम शबरी को जंगल में ।
लाखों का बेड़ा पार किया पहुँचाया हरि के धाम ।।1।। सीताराम ....
बजरंग बली के बल में इसकी महिमा भारी है ।
ध्रुव और विभीषण को भी यह बूटी प्यारी है ।
नारदजी के वीणा पर बजता यही है सुन्दर नाम ।।2।। सीताराम ....
ब्रह्माजी के चारों वेदों से यह नाम निकलता है ।
शंकर के मानस मंदिर में दीपक सा जलता है ।
भज करके देखले मनवा रे तेरे सँवरें सारे काम ।।3।। सीताराम ....
नैनों के तीर चलावे है ...
नैनों के तीर चलावे है ये चपल नयन बनवारी ।
राधा वल्लभ मदन मुरारी, ये गोवर्धन गिरीधारी ।।
आंखें इनकी हैं कजरारी, जियापे चोट करें ये करारी ।
मोहे घायल ये कर जावे हैं, ये चपल नयन ... ।।1।।
चोरी और फिर सीना जोरी, याकी आदत बड़ी निगोड़ी ।
हो मेरौ जिया लूट ले जावे, ये चपल नयन ... ।।2।।
ये बृज का एक खिलौना, मेरा सुंदर श्याम सलोना ।
'संजय' इन पर बलि जावे है, ये चपल नयन ... ।।3।।
कर गये दिल पे टोना ... ...
कर गये दिल पे टोना, बांके बिहारी के नैना ।
बांके के नैना, बिहारी के नैना ।।
इन नैनों पे सब कुछ हारा
बांका लगे मेरा प्यारा प्यारा
बिन देखे नहीं चैना, बांके बिहारी के नैना ।।
मोटे मोटे नैनों में झीना झीना कजरा
प्यारा लगे तेरा फूलों का गजरा
तेरी झांकी का क्या कहना, बांके बिहारी के नैना ।।
नैन लड़े जबसे बांके संग
प्रेम प्रीति का ऐसा चढ़ा रंग
हो मोहे बावरा बन के रहना, बांके बिहारी के नैना ।।
दिखा दो सांवरी सूरत .... ....
दिखा दो सांवरी सूरत, तो तेरी मेहरबानी है ।
तू ही तो दुनिया है मेरी, तुम्हीं से जिन्दगानी है ।।
खड़ी हूँ कब से दर पे श्याम, तुम्हारा दीदार पाने को
हुई बैचेन जाती हूँ, तुम्हें अपना बनाने को
तुम्हें अपना बना लूँ श्याम, यही बस मन में ठानी है ।।
ये है फरियाद बेशक कि, मेरे मालिक ज़रा सुन लो
न जानूं प्रीत की मैं रीत, ये तुमने ही निभानी है ।।
कीर्तन -' जै राधे राधे गोविन्द, गोविन्द राधे ।
गोविन्द राधे, गोपाल राधे ।।
आज तो म्हाकै राधेजी नै .... ....
आज तो म्हाकै राधेजी नै, श्याम लेबा आया सा ।
श्याम लेबा आया सा, घनश्याम लेबा आया सा ।।
पड़वा को तो पड़तो वार है, दूज नै ले जाज्यो सा
दूज की तो भाई दूज है, तीजां नै ले जाज्यो सा
तीज की तो आखा तीज है, चौथ नै ले जाज्यो सा ।।
चौथ की तो करवा चौथ है, पांच्यां नै ले जाज्यो सा
पांच्या की तो बसंत पंचमी, छठां नै ले जाज्यो सा
छठां की ऊभ छठ जी, सात्यूं नै ले जाज्यो सा ।।
सात्यूं की सीळ सप्तमी, आठैं नै ले जाज्यो सा
आठैं की जनम अष्टमी, नौमी नै ले जाज्यो सा
नौमी की राम नौमी, दस्सां नै ले जाज्यो सा ।।
दस्सां की तेजा दस्सां, ग्यारस नै ले जाज्यो सा
ग्यारस की तो जल झूलणी, बारस नै ले जाज्यो सा
बारस की बछ बारस है, तेरस नै ले जाज्यो सा ।।
तेरस की तो धन तेरस है, चौदस नै ले जाज्यो सा
चौदस की रूप चौदस, मावस नै ले जाज्यो सा
मावस की दीपावली, अजी पड़वा नै ले जाज्यो सा ।।
पड़वा का तो राम राम सा, अब पाछा ही मत आज्यो सा ।।
मेरी विनती यही है राधा रानी .... ....
मेरी विनती यही है राधा रानी, कृपा बरसाये रखना ।
मुझे तेरा ही सहारा महारानी, चरणों से लिपटाये रखना ।।
छोड़ दुनिया के झूठे नाते सारे, किशोरी तेरे दर पे आ गया
मैंने तुमको पुकारा बृजरानी, के जग से बचाये रखना ।।
इन सांसो की माला पे मैं, सदा ही तेरा नाम सिमरूं
लागी राधा श्रीराधा नाम वाली, लगन ये लगाये रखना ।।
तेरे नाम के रंग में रंग के, में डोलूं बृज गलियन में
कहे 'चित्र-विचित्र' श्याम प्यारी, वृंदावन बसाये रखना ।।
मैली चादर ओढ के कैसे .... ....
मैली चादर ओढ के कैसे, द्वार तुम्हारे आऊँ ।
हे पावन परमेश्वर मेरे, मन ही मन शरमाऊँ ।।
तूने मुझको जग में भेजा, देकर निर्मल काया
आकर के संसार में मैंने, इसको दाग लगाया
जनम जनम की मैली चादर, कैसे दाग छुड़ाऊँ ।।
निर्मल वाणी पाकर तुझसे, नाम न तेरा गाया
नयन मूंदकर हे परमेश्ववर, कभी न तुझको ध्याया
मन वीणा की तारें टूटीं, अब क्या गीत सुनाऊँ ।।
इन पैरों से चलकर तेरे, मंदिर कभी न आया
जहाँ जहाँ हो पूजा तेरी, कभी न शीश झुकाया
हे हरि हर मैं हार के आया, अब क्या हार चढ़ाऊँ ।।
घणी दूर सैं दौड़ रह्यो थारी गाडूली रै ला'र .... ....
घणी दूर सैं दौड़ रह्यो थारी गाडूली रै ला'र ।
गाडी मैं बैठा ले रे बाबा, जाणे नगर अंजार ।।
कहे नरसीलो म्हारै साथ मैं के करसी । ओढण कपड़ा नांय बठै सीयां मरसी ।
गाडूली मैं ठौड़ नहीं है, जाय उपालो हार ।।
नानी बाई रो भात देखबा चालूंला । पूण पावलो थाळी मैं भी घालूंला ।
चार पॉंच दिन आछा आछा जीमूं जीमणवार ।।
ग्यानदासजी कहे गाडोली तोड़ैला । ध्यानदासजी बोल्या तूमड़ा फोड़ैला ।
घणी भीड़ मैं टूटै म्हारा इकतारा रो तार ।।
जूड़ै ऊपर बैठ हांकस्यूं मैं नारा । थे करियो आराम दाबस्यूं पग थांरा ।
घरां सगां कै जाय उतारूं घड़ी लागसी चार ।।
कहे नरसी गाडी मैं आदमी बोळा है । मैं बैठ्यो हूँ एक सूरिया सोळा है ।
बूढा बैल टूटेड़ी गाडी झाल सकै ना भार ।।
देख पांच रै मांय कांटा और पाती है । किसनूं म्हारो नाम जात म्हारी खाती है ।
आरी और कुहाड़ी हाथ मैं गाडी देऊँ सुधार ।।
भोळा सा भगतां मैं भाव जद जाग्यायो । के बिगड़ै लै बैठ लैर जद भाग्यायो ।
हाजी बणकर हांकण लाग्या बैलां नै ललकार (रूकमण रा भरतार) ।।
टूटेड़ी गाडूली आज बिमाण बणी । नरसी गावै भजन सुणै जद आप धणी ।
सूरदास सब पीठ थपेड़ै जींवतौ रै मोट्यार ।।
'केशव' कुणसो भगत जठै हरि नहीं आयो । 'मोहन' मन हरसाय पकड़ मोटो पायो ।
दीन जाणकर दाता म्हारी नैया करज्यो पार ।।